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नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
कर रही थी फ़स्ल-ए-गुल जब राज़-ए-क़ुदरत आश्कार
जब उगलती थी ज़मीं गंजीना-हा-ए-पुर-बहार
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
मैं सताता भी तो वो करती थी जाँ मुझ पर निसार
अल-ग़रज़ थी मेरे दम से ज़ीस्त उस की पुर-बहार