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नज़्म
कभी मुझ को मिरे ही फेफड़ों की एक्स-रे में क़ैद तस्वीरें दिखा कर
कभी पेशाब की थैली लगा कर
शारिक़ कैफ़ी
नज़्म
जल के ख़ुद सब को जिला देना तिरा पेशा है
छुप के बैठी है अजल जिस में तू वो बेशा है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
लीडर के मुँह पे शहर के कूचों की गर्द है
''इश्क़-ए-नबर्द-पेशा तलबगार-ए-मर्द है''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सब ख़ुशामद-पेशा, दुनिया-दार और बे-रोज़गार
रात दिन मिलने को आते हैं क़तार-अंदर-क़तार