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नज़्म
मिट रहा है फ़ाक़ा-मस्ती से शराफ़त का निशाँ
बच्चा बच्चा मुल्क का है पैकर-ए-ग़म हाए हाए
सरीर काबिरी
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्ती में बिखरते हुए सारे रिश्ते
तंग-दस्ती के सबब सारी फ़ज़ाएँ बेहाल
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
क्या ख़बर थी क़ीमतें यूँ होंगी सस्ती एक दिन
''रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
कहीं दहक़ाँ के सीने पर हैं मोहरें फ़ाक़ा-मस्ती की
कहीं तख़्त-ए-सिकंदर जाह-ए-जम ऐसा न होना था
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तबस्सुम फ़तमा
नज़्म
आशिक़-ए-बिन्त-ए-एनब को आप कहते हैं वली
फ़ाक़ा-मस्ती में भी हर दम कर रहा है मय-कशी
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
सरीर काबिरी
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्तों के जिलौ में ख़ाना-बर्बादों के साथ
ख़त्म हो जाएगा ये सरमाया-दारी का निज़ाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
टिफ़िन खाने का जिस ने अपने हाथों में सँभाला है
समझ लो फ़ाक़ा-मस्तों के लिए वो तर निवाला है
असद जाफ़री
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
कल-जुग में भी मरती है सत-जुग में भी मरती थी
ये बुढ़िया इस दुनिया में सदा ही फ़ाक़े करती थी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दूर से चल के आया था मैं नंगे पाँव नंगे सर
सर में गर्द ज़बाँ में काटने पाँव में छाले होश थे गुम
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
नज़्म
वो हुस्न जो ख़ंदा-ज़न था कभी महताब की उजली किरनों पर
वो गाल जिन्हों ने शरमाया शादाब कँवल के फूलों को