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नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
ये सच कि सुहाने माज़ी के लम्हों को भुलाना खेल नहीं
ये सच कि भड़कते शोलों से दामन को बचाना खेल नहीं
आमिर उस्मानी
नज़्म
बहू कहे जब देखो जब ही ख़्वाही नख़्वाही बात बढ़ाना
सास पुकारे ऐ मिरे अल्लाह तौबा भली अब तू ही बचाना