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नज़्म
ऐ गिरफ़्तार-ए-अबु-बकर-ओ-अली हुशियार-बाश
'इश्क़ को फ़रियाद लाज़िम थी सो वो भी हो चुकी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बरसों बा'द जब उस को देखा फूल सा चेहरा बदल चुका था
पेशानी पर फ़िक्र की आयत आँखें अब संजीदा थीं