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नज़्म
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कुछ ख़्वाब हैं आज़ाद मगर बढ़ते हुए नूर से मरऊब
ने हौसला-ए-ख़ूब है ने हिम्मत-ए-ना-ख़ूब
नून मीम राशिद
नज़्म
तिरे पूरे बदन पर इक मुक़द्दस आग का पहरा है
जो तेरी तरफ़ बढ़ते हुए हाथों के नाख़ुन रोक लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
ज़माना मुश्किलों के जाल फैलाए तो फैलाए
क़दम बढ़ते रहें बे-दर्द दुनिया लाख बहकाए