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नज़्म
निगाह में लिए हुए घुटी घुटी सी जुस्तुजू
भटक रहे हैं वादी-ए-ख़िज़ाँ में बहर-ए-रंग-ओ-बू
मोहसिन भोपाली
नज़्म
मौज-ए-रवाँ हैं मिस्रा-ए-बे-साख़्ता तिरे
बहर-ए-सुख़न में बहर-ए-मोहब्बत का जोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
बहर-ए-तूफ़ानी-ए-दुनिया में हैं हम सर-गश्ता
मौज-ए-ग़म में है जहाज़ अपना थिएटर खाता