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नज़्म
मेहरबाँ मुझ से ये तुम पूछा हो क्या पैसे का
ये तो क्या और जो हैं इस से बड़े बाग़-ओ-चमन
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बा'द गाँधी के न सुन हम ने समाँ देखा क्या
फ़स्ल-ए-गुल आते ही हर बाग़-ओ-चमन उजड़ा क्या
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
बाग़-ओ-बहार आदमी तो कभी नहीं मरता
तुम्हारी बाग़-ओ-बहार आवाज़ तो मैं अब भी सुन रहा हूँ
अहमद हमेश
नज़्म
दिल मिरा कोह ओ दमन दश्त ओ चमन की हद है
मेरे कीसे में है रातों का सियह-फ़ाम जलाल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ओ चमन की अजनबी चिड़िया! कहाँ थी आह! तू
क्या किसी सहरा के दामन में निहाँ थी आह! तू
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
हाँ देखा कल हम ने उस को देखने का जिसे अरमाँ था
वो जो अपने शहर से आगे क़र्या-ए-बाग़-ओ-बहाराँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
शब के पर्दे ही में करता है ये आराइश-ए-रुख़
इस की ज़ुल्फ़ों से महक उठते हैं गुलज़ार-ओ-चमन