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नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
'इशक़-ओ-मस्ती की ब-आहंग-ए-‘ख़याम'-ओ-'हाफ़िज़'
साज़-ए-उर्दू से न निकलेगी सदा तेरे बा'द
बिस्मिल सईदी
नज़्म
इक राज़-ए-तमन्ना कि जो होंटों पे चला आए
इक हर्फ़-ए-मुकर्रर कि जो बातों में कहा जाए
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
तिरी जागीर में इरफ़ाँ की मस्ती है गुरु-नानक
तिरी तहरीर औज-ए-हक़-परस्ती है गुरु-नानक
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
अहमरीं साग़र, लब-ए-ल'अलीं, निगाहें मय-फ़रोश
हर तरफ़ है एक मस्ती, हर तरफ़ है इक ख़रोश
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
बद-मस्ती में वक़्त ने अपनी ज़ुल्फ़ें दी हैं खोल
आज है अपनी इस धरती का इक इक पल अनमोल
शादाँ बराबंकवी
नज़्म
हद को पहुँची थी मोहब्बत मिरी तेरे आगे
हो गई हद से ये कम-बख़्त सिवा तेरे ब'अद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
यूँ आए हैं घिर घिर के ये दुख-दर्द के बादल
तारीक फ़ज़ाओं में घुला जैसे हो काजल