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नज़्म
निकल कर हिन्द से पहुँची ये अमरीका और अफ़्रीक़ा
समझ लेते हैं हर मुल्कों के बाशिंदे ज़बाँ उर्दू
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
ख़ुदा के नथनों से बहती वहशत का इर्तिकाज़
और मिर्रीख़ी बाशिंदे की चीख़ हम पर टूट पड़ेगी
हसन अल्वी
नज़्म
दुनिया में चल-फिर कर तुम ने देखे होंगे इंसान बहुत
लेकिन इस मुल्क के बाशिंदे सब के सब हैं नादान बहुत
सलाम संदेलवी
नज़्म
ख़रोश-आमोज़ बुलबुल हो गिरह ग़ुंचे की वा कर दे
कि तू इस गुल्सिताँ के वास्ते बाद-ए-बहारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझे इक़रार है ये ख़ेमा-ए-अफ़्लाक का साया
उसी की बख़्शिशें हैं उस ने सूरज चाँद तारों को
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
बाद-ए-सबा की मौज से नश-नुमा-ए-ख़ार-अो-ख़स!
मेरे नफ़स की मौज से नश-ओ-नुमा-ए-आरज़ू!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
झाड़ियाँ जिन के क़फ़स में क़ैद है आह-ए-ख़िज़ाँ
सब्ज़ कर देगी उन्हें बाद-ए-बहार-ए-जावेदाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शम-ए-हक़ से जो मुनव्वर हो ये वो महफ़िल न थी
बारिश-ए-रहमत हुई लेकिन ज़मीं क़ाबिल न थी