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नज़्म
हवस ने कर दिया है टुकड़े टुकड़े नौ-ए-इंसाँ को
उख़ुव्वत का बयाँ हो जा मोहब्बत की ज़बाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क्या बधिया भैंसा बैल शुतुर क्या गौनें पल्ला सर-भारा
क्या गेहूँ चाँवल मोठ मटर क्या आग धुआँ और अँगारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उड़ गया दुनिया से तू मानिंद-ए-ख़ाक-ए-रह-गुज़र
ता-ख़िलाफ़त की बिना दुनिया में हो फिर उस्तुवार