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नज़्म
राही मासूम रज़ा
नज़्म
झुटपुटे के वक़्त घर से एक मिट्टी का दिया
एक बुढ़िया ने सर-ए-रह ला के रौशन कर दिया
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
बुढ़िया ने सर पीटा अपना ख़ूब किया वावैला
ओढ़ लिया फिर वो दोपट्टा रंग था जिस का मैला
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
एक बुढ़िया शब गए दहलीज़ पर बैठी हुई
तक रही है अपने इकलौते जवाँ बच्चे की राह
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नज़्म
बहू कहे ये बुढ़िया मेरी जान की लागू बन के रहेगी
सास कहे गज़-भर की ज़बाँ है अपनी मुँह आई ही कहेगी
मीराजी
नज़्म
बलाएँ पर बलाएँ लेगी बढ़ कर चाँद की बुढ़िया
दुल्हन को देख कर दूल्हे की क़िस्मत जगमगाएगी