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नज़्म
तुझे मुफ़लिसी न पसंद थी तिरी राह-ए-स’ई न बंद थी
तिरी हिम्मत ऐसी बुलंद थी कि निसार उस पे थीं हिम्मतें
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
शोर गीर-ओ-दार का है फिर फ़ज़ाओं में बुलंद
आज फिर हिम्मत ने फेंकी है सितारों पर कमंद
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
राह देखी नहीं और दूर है मंज़िल मेरी
कोई साक़ी नहीं मैं हूँ मिरी तन्हाई है
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
मेरी पस्ली में जमा है कई शहरों का सुकूत
जैसे सोया हो किसी ग़ार में तहज़ीब का भूत
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे
मगर मैं अपने कमरे में बहुत अफ़्सुर्दा बैठा था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ऐ मिरे शेर के नक़्क़ाद तुझे है ये गिला
कि नहीं है मिरे एहसास में सरमस्ती ओ कैफ़