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नज़्म
एक रंगीन ओ हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी
जन्नत-ए-शौक़ थी बेगाना-ए-आफ़ात-ए-सुमूम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उसे अपना बनाने की धुन में हुआ आप ही आप से बेगाना
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
न रह अपनों से बे-परवा इसी में ख़ैर है तेरी
अगर मंज़ूर है दुनिया में ओ बेगाना-ख़ू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह शूदर के लिए हिन्दोस्ताँ ग़म-ख़ाना है
दर्द-ए-इंसानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़मर अपने लिबास-ए-नौ में बेगाना सा लगता था
न था वाक़िफ़ अभी गर्दिश के आईन-ए-मुसल्लम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कँवल का फूल थी संसार से बेगाना रहती थी
नज़र से दूर मिस्ल-ए-निकहत-ए-मस्ताना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
'नहीफ़' अपने पराए सब इसी के दिल में रहते हैं
सब अपने हैं नहीं कोई भी बेगाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
तुम मिरी हो कर भी बेगाना ही पाओगी मुझे
मैं तुम्हारा हो के भी तुम में समा सकता नहीं