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नज़्म
मैं जब भी ग़ौर करता हूँ तिरी इस बेवफ़ाई पर
तो ग़म की आग में मेहर-ओ-वफ़ा के फूल जलते हैं
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता तू ने की मुझ से बे-वफाई
आ जा पलट के दम भर मैं हूँ तिरा फ़िदाई
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
बेवफ़ाई जिस ने की तुझ से यक़ीनन जो भी हो
ना-मुकम्मल उस का ईमाँ कुफ़्र उस के दिल में है