aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बे-इंतिहा"
अन-गिनत कहकशाओं के झुरमुट ने बे-इंतिहा दाएरे बुन दिएऔर पाताल में जज़्ब रंगों ने उगले कई हलहले
बे-इंतिहा प्यारफिर अचानक
आतिश-ख़ोर पेड़एक बे-इंतिहा ज़मीन
बदन बे-इंतिहा नाज़ुकमिरे इन सख़्त हाथों में
बे-इंतिहा ख़ूबसूरत हैमुझे जीने का हौसला देने वाली
वो नित-नई अनोखी बे-इंतिहा ख़ुशियाँमौजूद भी हैं ज़िंदा भी
महदूद तू समझने लगा है इसे मगरबे-इंतिहा वसीअ' है मैदान-ए-ज़िंदगी
मैं उस नीले पर्बत की ऊँचाइयों परजो बे-इंतिहा ख़ूबसूरत नज़र आ रही हैं
मकान में नज़र आता नहीं कहीं भी मगरमैं उस को ढूँडूँ तो बे-इंतिहा मोहब्बत से
कि किस तरह तिरी बाँहों की दूरियाँ मुझ कोजहान-ए-कर्ब में बे-इंतिहा सताती हैं
कि दीवार-ओ-दर इस में बे-इंतिहा हैंये बाहर का रस्ता नहीं शर्त कोई
जिस ने हर आते-जाते को मसहूर सा कर दियामैं ने उस को बड़ा बे-इंतिहा प्यार बख़्शा
हर तमन्ना मेरी उन का मुद्दआ' है आज-कलज़िंदगी ही ज़िंदगी का आसरा है आज-कल
इक अज़ल था कभीकुछ न था जब कहीं
ये ज़मीं ये आसमाँ ये काएनातएक ला-महदूद वुसअ'त एक बे-मा'नी वजूद
सरगुज़श्त-ए-नौहागर है ज़िंदगीदास्तान-ए-अश्क-ए-तर है ज़िंदगी
एक अर्सा हुआतुझ से बिछड़े हुए
या किसी बे-ज़मानी की वो इंतिहा थी
ये तारीक शब जो दिनों से बढ़ करये एक शब जो सहर से अव्वल
शहर-ए-ला-मकाँ से हूँजिस में इक मकाँ मेरा
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