aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बे-कनार"
तौसीफ़-ए-बे-कनार का हक़दार आदमीदुनिया-ए-शश-जिहात का सरदार आदमी
क़ुल्ज़ुम-ए-बे-कनार का आलमआलमों के ग़ुबार का आलम
मैं जानता हूँ बहर-ए-बे-कनार मेंकई जगह भँवर भी हैं
जो पानियों को छू करबे-कनार कर सकते हो
जैसे ख़ुश्क पत्तों का ढेर उड़ता फिरता हैबे-कनार सम्तों में
इम्कान के बे-कनार पन्ने परकुछ लिख रही थीं तुम्हारी उँगलियाँ
बंद कर लेता हूँ अपनी आँख औरदेखता हूँ सामने फैला हुआ इक जहान-ए-बे-कनार
हैं मेरे एहसास का असासाबहार के बे-कनार मौसम में खिलने वाले
वक़्त के बे-कनार जंगल मेंअध-जली चादर से सर को ढाँपे
वो आब-ए-हैवाँवो इम्बिसात-ओ-हयात का बे-कनार दरिया
कैसे इक बे-कनार कोहरे में छुप गए हैंवो ख़्वाब जो हैरतों वफ़ाओं ने
तेरे साहिल के सुहाने दोष परऔर तू ख़ामोश सागर की तरह है बे-कनार
कि मैं तो तेरी तलाश के बे-कनार सहरा मेंवहम के बे-अमाँ बगूलों के वार सह कर
ज़ेहन से बाहर है बेहद-ओ-बे-कनार मा'दूमियत का मंज़रकशिश तवाज़ुन वजूद लहरें ज़ेहन के सफ़्हात से मिटें तो
बस उस के जिस्म-ओ-जाँ के बे-कनारपानियों में पैर ने का भूत
आरज़ू की वुसअतें सहरा-ब-सहरा बे-कनारना-तराशीदा चटानें रास्ता रोके हुए
ये उम्र बे-कनार रास्तों में बीत जाएगीमैं अब उजाड़ बस्तियों में लौट के न आऊँगी
ग़व्वास-ए-फ़िक्र के लिए ग़ालिब की शायरीइक बहर-ए-बे-कनार-ए-फ़ुनून-ओ-उलूम है
इक बे-कनार सहरा मेंमौज-ए-रेग-ए-रवाँ नुक़ूश-ए-नवी बना दे
मैं बे-कनार से रस्ते पे पाँव पाँव चलाकिनारा-ए-मह-ओ-अंजुम की सम्त खो बैठा
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