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नज़्म
वाक़िफ़-ए-अटलांटिक थी बे-नियाज़-ए-ख़ुश्क-ओ-तर
मैं ने स्टेटस की ख़ातिर कर तो ली शादी मगर
खालिद इरफ़ान
नज़्म
मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
बे-नियाज़-ए-ग़म-ओ-आलाम हर इक फ़िक्र से दूर
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
पर्दा-ए-हर-लफ़्ज़ में पोशीदा मा'नी का शुऊ'र
बे-नियाज़-ए-जाम-ओ-साग़र एक रूहानी सुरूर
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
हाँ कज करो कुलाह कि सब कुछ लुटा के हम
अब बे-नियाज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
चराग़-ए-दैर फ़ानूस-ए-हरम क़िंदील-ए-रहबानी
ये सब हैं मुद्दतों से बे-नियाज़-ए-नूर-ए-इर्फ़ानी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बे-नियाज़-ए-'ऐश-ओ-'इशरत आश्ना-ए-दर्द-ओ-ग़म
एक मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ आशुफ़्ता-रौ बा-चश्म-ए-तर
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
बे-नियाज़-ए-आतिश-ए-सोज़ाँ था वो मर्द-ए-अजीब
उस की आँखों में न था कोई निशान-ए-इज़्तिराब
शबाब ललित
नज़्म
ज़ौक़-ए-उल्फ़त बे-नियाज़-ए-मा-सिवा है आज-कल
मुझ को उन से उन को मुझ से वास्ता है आज-कल