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नज़्म
अंजुम सलीमी
नज़्म
अभी ये दिन-रात सर्द-मेहरी के इतने ख़ूगर नहीं हुए हैं
तो फिर ये बे-वज़्न सुब्ह क्यूँ बोझ बन रही है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अभी ये दिन-रात सर्द-मेहरी के इतने ख़ूगर नहीं हुए हैं
तो फिर ये बे-वज़्न सुब्ह क्यूँ बोझ बन रही है
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