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नज़्म
पानी पानी हुआ जाता है मुसव्विर का क़लम
ये तिरा बैत-ए-मुक़द्दस तिरी रिफ़अत का मज़ार
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
इसी के जुम्बिश-ए-अबरू पे है इंग्लैण्ड का ग़र्रा
इसी के हैं सब आवुर्दे फ़्रांसीसी ओ एल्बानी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
कि हम मेहराब-ए-अबरू में सितारे टाँकने वाले
दर-ए-लब बोसा-ए-इज़हार की दस्तक से अक्सर खोलने वाले
सलीम कौसर
नज़्म
यूसुफ़-ए-मुल्क-ए-मआनी पीर-ए-कनआ'न-ए-सुख़न
है तिरी हर बैत अहल-ए-दर्द को बैत-उल-हुज़न