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नज़्म
वफ़ादारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल-ए-ईमाँ है
मगर मेरी ज़बान-ए-बे-ज़बाँ कुछ और कहती है
रज़ी बदायुनी
नज़्म
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यूँ तो हर शाइ'र की फ़ितरत में है कुछ दीवानगी
ग़ैर ज़िम्मेदारियाँ हैं उस की जुज़्व-ए-ज़िंदगी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
दामन-ए-शौक़ को थामे हुए हैं शर्म-ओ-हया
दिल धड़कता है ब-अंदाज़-ए-दिगर आज की रात
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
नज़्म
तू ही बतला कि भला मेरे सिवा दुनिया में
कौन समझेगा इन आँखों के तबस्सुम का गुदाज़