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नज़्म
भूली बिसरी यादें अब भी कानों में रस घोलती हैं
मुझ से कैसी कैसी बातें तन्हाई में बोलती हैं
क़मर जमील
नज़्म
पिछली रात का चाँद दिखाई देता था कुछ यूँ तारों में
जैसे कोई जान बूझ कर कूद रहा हो अँगारों में
तख़्त सिंह
नज़्म
कितनी वीरान है उजड़े हुए ख़्वाबों की मुंडेर
भूली-बिसरी हुई यादों के पपीहे चुप हैं