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नज़्म
आज शायद मंज़िल-ए-क़ुव्वत में तुम रहते नहीं
जिस की लाठी उस की भैंस अब किस लिए कहते नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जिस की लाठी उस की भैंस इस मिस्ल को सादिक़ समझ
ये समझ कर इस ख़ुदा-ए-पाक को राज़िक़ समझ
अर्श मलसियानी
नज़्म
हामी-ए-जौर-ओ-सितम हर तरह माला-माल था
जिस की लाठी थी उसी की भैंस थी ये हाल था