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नज़्म
ये सब कुछ है मगर हस्ती मिरी मक़्सद है क़ुदरत का
सरापा नूर हो जिस की हक़ीक़त मैं वो ज़ुल्मत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझे इंसानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने
मिरा मक़्सद फ़क़त शोला-नवाई हो नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आज से मेरे फ़न का मक़्सद ज़ंजीरें पिघलाना है
आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इसी कोए को खाता रहता हूँ और काट कर इस से आता हूँ बाहर
और अपने जीने का मक़्सद सबब जानना चाहता हूँ
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मैं मुक़द्दर से गले मिल के नहीं रो सकता
तुझ को पाना मिरा मक़्सद है तुझे पाऊँगा
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
दिल को हो शाहज़ादी-ए-मक़्सद की धुन लगी
हैराँ सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल में हम भी हों
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरा मंशा नहीं अक़्वाम-ए-ज़ुबूँ की तस्ख़ीर
मेरा मक़्सद नहीं पहनाऊँ ख़िरद को ज़ंजीर