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नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये झूट भी हैं ये लूट भी हैं ये जंग भी हैं ये ख़ून भी हैं
मगर ये मजबूरियाँ हैं इन की
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
मिरी मजबूरियाँ काफ़ी नहीं क्या मुँह चिढ़ाने को
जो तू भी मुँह चिढ़ाता और मेरी जान खाता है
तालिब चकवाली
नज़्म
मुझे नफ़रत नहीं है इश्क़िया अशआ'र से लेकिन
अभी इन को ग़ुलामाबाद में मैं गा नहीं सकता
सलाम मछली शहरी
नज़्म
समझना चाहिए मजबूरियाँ अहल-ए-चमन को सब्ज़ बेलों की
नुमू मुहताज है जिन की हमेशा इक सहारे की
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
''यूँ तो मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ मगर क्या कीजे
बाज़ मजबूरियाँ....'' मजबूरियाँ! मैं जानती हूँ
ज़िया जालंधरी
नज़्म
ग़ैर-फ़ितरी तहफ़्फ़ुज़ की मजबूरियाँ
आदमी आज कीड़े-मकोड़े की मानिंद फिर रेंगने लग गया
होश जौनपुरी
नज़्म
उस के जुड़वाँ लब इक दूसरे से मिल रहे थे
तब हमारे हिज्र की मजबूरियाँ मिसरों में लिपटा कर