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नज़्म
ये जा कर कोई बज़्म-ए-ख़ूबाँ में कह दो
कि अब दर-ख़ोर-ए-बज़्म-ए-ख़ूबाँ नहीं मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं हमा-शौक़-ओ-मोहब्बत वो हमा-लुत्फ़-ओ-करम
मरकज़-ए-मर्हमत-ए-महफ़िल-ए-ख़ूबाँ हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़याल-ओ-फ़िक्र-ए-ख़ूबाँ से नहीं अब मुझ को दिलचस्पी
कि उन से ज़ेहन-ओ-दिल के सारे नाते तोड़ आया हूँ
अख़तर बस्तवी
नज़्म
ये सराबों के पुजारी ये ग़ुलामों के ग़ुलाम
मज्लिस-ए-जौर-ओ-जफ़ा कारगह-ए-दाना-ओ-दाम
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
है मेरी ज़िंदगी अब रोज़-ओ-शब यक-मज्लिस-ए-ग़म-हा
अज़ा-हा मर्सिया-हा गिर्या-हा आशोब-ए-मातम-हा
जौन एलिया
नज़्म
मजलिस-ए-वाज़ आज तो होती नज़र आती नहीं
हज़रत-ए-वाइ'ज़ अबस कोशाँ हैं कोरम के लिए