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नज़्म
तेरे हाथों में है क़िस्मत का नविश्ता अपना
किस क़दर तुझ से भी मज़बूत है रिश्ता अपना
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
तुम्हारा मुंतज़िर है तुम मुझे मज़बूत बाँहों में
कभी हौले से ले लोगे मिरे कानों में कह दोगे
तनवीर अंजुम
नज़्म
हर-चंद कि
बुरी भीड़ के ज़माना में अच्छी किताबें लिखने पढ़ने के मज़बूत सामान नायाब हो जाते हैं
अहमद हमेश
नज़्म
है कोई तो बात जो वो आवाज़ दबाने पे आमादा है
लगा ले जितना दम हो अपना भी मज़बूत इरादा है
सचिन देव वर्मा
नज़्म
दुनिया के हिलाए हिल न सकें दुनिया के मिटाए मिट न सकें
कुछ ऐसी हैं कुछ ऐसी हैं मज़बूत बिनाएँ भारत की