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नज़्म
रह-ए-तारीक-ए-ज़लालत में पए ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
शम्अ-सा मज़हर-ए-अनवार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
ज़मीं जहन्नुम का और जन्नत का मज़हर-ए-इश्तिराक है
ये कि इक हसीं इम्तिज़ाज है जिस में प्यार-ओ-उलफ़त के