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नज़्म
फ़साद-ओ-शर जहाँ सोते हैं ख़्वाबों के मज़ारों में!
मिरी 'सलमा'! मुझे ले चल तू उन रंगीं नज़ारों में!
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो क्या जानें क्यों माह-पारों से पूछो
मोहब्बत है क्या ग़म के मारों से पूछो