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नज़्म
बादल घिरे हुए हैं रक़्साँ हैं बिजलियाँ भी
छिड़ जाएँ साज़-ए-इशरत हों दौर मय-कशी के
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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बादल घिरे हुए हैं रक़्साँ हैं बिजलियाँ भी
छिड़ जाएँ साज़-ए-इशरत हों दौर मय-कशी के