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नज़्म
झूट क्यूँ बोलें फ़रोग़-ए-मस्लहत के नाम पर
ज़िंदगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उस पर मरना, आहें भरना, रोना, कुढ़ना, जलना
आब-ओ-हवा पर ज़िंदा रहना, अँगारों पर चलना