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नज़्म
नशीली आँखें, रसीली चितवन, दराज़ पलकें, महीन अबरू
तमाम शोख़ी, तमाम बिजली, तमाम मस्ती, तमाम जादू
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
इश्क़ की मस्ती से है पैकर-ए-गिल ताबनाक
इश्क़ है सहबा-ए-ख़ाम इश्क़ है कास-उल-किराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न सहबा हूँ न साक़ी हूँ न मस्ती हूँ न पैमाना
मैं इस मय-ख़ाना-ए-हस्ती में हर शय की हक़ीक़त हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो दौर भी था जब दुनिया की हर शय पे जवानी छाई थी
ख़्वाबों की नशीली बद-मस्ती मासूम दिलों पर छाई थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
हुई अँगूर की बेटी से ''मस्ती-ख़ान'' की शादी
खुले दर मय-कदों के और मिली रिंदों को आज़ादी
मजीद लाहौरी
नज़्म
शराब आँखों से ढल रही है, नज़र से मस्ती उबल रही है
छलक रही है उछल रही है, पिए हुए हैं पिला रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
सीना-ए-कोहसार पर चढ़ती हुई बे-इख़्तियार
एक नागन जिस तरह मस्ती में लहराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो नर्गिस-ए-सियाह-ए-नीम-बाज़, मय-कदा-ब-दोश
हज़ार मस्त रातों की जवानियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
याँ हर-दम झगड़े उठते हैं हर-आन अदालत बस्ती है
गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गुनगुना के मस्ती में साज़ ले लिया मैं ने
छेड़ ही दिया आख़िर नग़्मा-ए-वफ़ा मैं ने