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नज़्म
जिस के दीवार-ओ-दर मेरी बे-ख़्वाब आँखों से मानूस हैं
और जिस को कभी मैं ने देखा नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
इक नई सूरत मगर कुछ नक़्श तो मानूस हैं
और हर लम्हे से हर आँसू से क़स्र-ए-नीलगूँ इस्तादा है