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नज़्म
घर में घुसने वाला डाकू काली जेब होने के जुर्म में
मुझे बंदूक़ के हिट-मार्के से हलाक कर सकता है
ज़ाहिद मसूद
नज़्म
ख़ल्क़ का ख़ालिक़ से रब्त-ओ-सिलसिला है हर्फ़-ए-ला
ख़ैर-ओ-शर के मा'रके की इब्तिदा है हर्फ़-ए-ला
नसीम अंसारी
नज़्म
ये फिर कौन से मा'रके का इरादा
तुम्हारी नसों में ये किस ख़्वाब-ए-फ़ातेह का फिर बाब-ए-वहशत खुला है
रफ़ीक़ संदेलवी
नज़्म
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं
कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं