aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मारते"
रंग बदलते गिरगिट कोमारते कहाँ जाएँ
क्या नफ़ासत से चाबुक मारते हैं हुक्काममज़ा आ रहा है कहते हैं अवाम
ये शहीदबा-ए-बा-वफ़ा हैं मारते थे बोल केरेल की पटरी के पुर्ज़े दरमियाँ से खोल के
बकरे तमाम राह में हुंकारते चलेबंगलों के बेल-बूटों पे मुँह मारते चले
और कभी ज़मीन पर दे मारते हैंये कपड़ों के रंगों से ज़ियादा
हम जो क़ैद-ए-ज़माँ-ओ-मकाँ से निकलने को पर मारते हैंभला शाम ढलने पे अल्फ़ाज़ के पंछियों को जकड़ते हैं क्यूँ
मुझे गोश्त की थाली समझ करचील की तरह झपटा मारते हो
लिए हाथों में बस्ते मारते फूटबाल को ठोकरउछलते कूदते बच्चे नज़र आते हैं सड़कों पर
मास्टर मुझ को मारते क्यों हैंमैं ने उन को भला कहा क्या है
साया नहीं चुराते उन कागिलहरियों को नहीं मारते
कभी न मारते उन कोवो नरमी और मोहब्बत से
ये नहीं मारते इक दूजे के ख़ेमों पर शब-ख़ूनये नहीं लूटते अपनी माओं और बहनों की लाज
हम उन्हें ठोकरें मारते हैंऔर कभी मुआफ़ी नहीं माँगते
और मुझे पत्थर क्यों मारते होकल कहीं ऐसा न हो
ये लड़ते हैं पहले और दूसरे नंबर की जीत परठोंगें मारते हैं चौथे और तीसरे नंबर की पीठ पर
कहा बच्चों ने तुम गप मारते होमियाँ तुम भी कहाँ की हाँकते हो
कहीं पर न अब हैं निशान पाँव केजहाँ से कई क़ाफ़िले मंज़िलें मारते
नीचे सीटी मारते लोगों से ताली बजवानी हैआँखें भी बंद रखनी हैं गिर अपनी जान बचानी है
ख़यालों की पुरानी देग में बास मारते ख़्वाबकोलुहओं की भट्टी के पास जलता सर्द ख़ून
हम जो जीते थे तो जंगों की मुसीबत के लिएऔर मरते थे तिरे नाम की अज़्मत के लिए
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