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नज़्म
तू ने की तख़्लीक़ ऐ महव-ए-ख़िराम-ए-जुस्तुजू
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर से काएनात-ए-रंग-ओ-बू
मयकश अकबराबादी
नज़्म
वो साहिरा थी या किसी ख़याल का वजूद थी
ख़ुदी में एक ख़्वाब थी या ख़्वाब की नुमूद थी
अशफ़ाक़ अहमद साइम
नज़्म
इक जगह कैसे इकट्ठे कर दिए हैं सात रंग
शोख़ हैं सातों के सातों इक नहीं है मात रंग