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नज़्म
क्या जाँ-फ़ज़ा है जल्वा ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी का
हर इक शुआ-ए-रक़्साँ मिस्रा है अनवरी का
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
उर्दू-अदब में ढाई हैं शायर 'मीर' ओ 'ग़ालिब' आधा 'जोश'
या इक-आध किसी का मिस्रा या 'इक़बाल' के चंद अशआर
हबीब जालिब
नज़्म
हर एक लफ़्ज़ परेशाँ हर एक मिस्रा उदास
हम अपने शेरों के मफ़्हूम पर पशेमाँ हैं
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
नज़्म
नजीब अहमद
नज़्म
ताबिश कमाल
नज़्म
मौज-ए-रवाँ हैं मिस्रा-ए-बे-साख़्ता तिरे
बहर-ए-सुख़न में बहर-ए-मोहब्बत का जोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
आप हँसेंगे मैं जब भी ये मिस्रा पढ़ता हूँ
इस तरह से मुझे उस्तुरा याद आ जाता है