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नज़्म
तुम्हारी हर ग़ज़ल में मीर का अंदाज़ मिलता है
हर इक मिसरे से जैसे धीमी धीमी आँच उठती है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मिरे सीने में भी इक दर्द उठा जाता है
तेरी यादें भी बहुत ज़ेहन में चिल्लाती हैं
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
नज़्म
सलमान हैदर
नज़्म
सैकड़ों मिसरे बदल कर रख दिए कुछ इस तरह
नफ़्स-ए-मज़मूँ नज़्र हो कर रह गया इस्लाह की
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
जहान-ए-क़ुद्स का तू एक फ़िरदौसी फ़साना है
तुझे मिस्र-ए-जमाल-ओ-नाज़ की इक साहिरा कहिए