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नज़्म
तुम अपने प्यार को रुस्वा करो न रो रो कर
तुम्हारा प्यार मुक़द्दस है बाइबल की तरह
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
वो महव-ए-ख़्वाब जब होती थी अपने नर्म बिस्तर पर
तो उस के सर पे मर्यम का मुक़द्दस हाथ होता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
तिरे पूरे बदन पर इक मुक़द्दस आग का पहरा है
जो तेरी तरफ़ बढ़ते हुए हाथों के नाख़ुन रोक लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
ग़रीबों का मुक़द्दस ख़ून पी पी कर बहकती है
महल में नाचती है रक़्स-गाहों में थिरकती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुम्हारा नाम लेता हूँ
तो सदियों क़ब्ल के लाखों सहीफ़ों के मुक़द्दस लफ़्ज़ मेरा साथ देते हैं
रहमान फ़ारिस
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
वो मस्जिद का मुक़द्दस फ़र्श उस के ख़ूँ से भीगा है
वो गूलर जिस पे मेरे ख़्वाब की परियों का डेरा था