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नज़्म
तुम्हीं बताओ मैं ख़ुद को कहाँ तलाश करूँ
सवाल ये है कि तुम से ही क्यों मुख़ातिब हूँ
अमीता परसुराम मीता
नज़्म
लड़के मिरे ख़ुश हो के उधर देख रहे हैं
इख़्लास-ओ-मोहब्बत से मुख़ातिब हूँ जिधर मैं
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
तू परेशाँ न हो गर मुझ से मुख़ातिब है कोई
मैं तुझे प्यार का मक़्सूम बता सकता हूँ
अयाज़ बिलग्रामी
नज़्म
हाँ मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-हवा भी तोड़ दूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ