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नज़्म
ये कस दयार-ए-अदम में मुक़ीम हैं हम तुम
जहाँ पे मुज़्दा-ए-दीदार-ए-हुस्न-ए-यार तो क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सर-ब-सर इक मुज़्दा-ए-तसकीन-ए-मरदान-ए-ज़ईफ़
क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-यारान-ए-जवाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुज़्दा-ए-अम्न-ओ-अमाँ सुल्ह का पैग़ाम है क्या
जंग-ए-आज़ादी-ए-इंसाँ का सर-अंजाम है क्या
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
क्यों मुझे होता है एहसास-ए-तबाही क्या करूँ
इक ख़लिश सी है मिरे दिल में इलाही क्या करूँ
जौहर निज़ामी
नज़्म
घर से लाया था जो कुछ तब्-ए-रवाँ ज़ेहन-ए-रसा
साथ उस के रहे असबाब-ए-तबाही बन कर
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
घर से लाया था जो कुछ तब'-ए-रवाँ ज़ेहन-ए-रसा
साथ उस के रहे असबाब-ए-तबाही बन कर
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
जान-ए-जाँ समझा हूँ जिस को दुश्मन-ए-जाँ तो नहीं
ये तबाही का मिरी रंगीन उनवाँ तो नहीं