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नज़्म
जो कोशिश मुत्तहिद हो कर कहीं इक बार हो जाए
यक़ीं है मुल्क की क़िस्मत का बेड़ा पार हो जाए
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
रऊनत ये सिखाती है मुनाफ़िक़ हुक्मरानों को
इसी के बत्न से होते हैं पैदा जब्र-ओ-ज़ुलम-ओ-शर
रहबर जौनपूरी
नज़्म
मैं मुनाफ़िक़ हूँ हर इक का दोस्त बन जाता हूँ मैं
दोस्त बन कर दोस्तों में फूट डलवाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मुल्तफ़ित करता तुझे क्या अग़निया का कर्र-ओ-फ़र्र
था तिरी रग रग में दरवेशों की सोहबत का असर