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नज़्म
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल आए तसव्वुर में अगर
गोशा-ए-दिल में मचलते हुए अरमाँ होंगे
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
फीका है जिस के सामने अक्स-ए-जमाल-ए-यार
अज़्म-ए-जवाँ को मैं ने वो ग़ाज़ा अता किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
ऐ शहीद-ए-जलवा-ए-मानी फ़क़ीर-ए-बे-नियाज़
इस तरह किस ने कही है दास्तान-ए-सोज़-अो-साज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
फिरती हैं मारी मारी मुश्ताक़-ए-जल्वा आँखें
पर इक झलक से बढ़ कर देता नहीं दिखाई
ग़ुलाम भीक नैरंग
नज़्म
बे-ख़ुदी कहती है आया ये फ़ज़ा में क्यूँ कर
किसी उस्ताद मुसव्विर का है ये जल्वा-ए-ख़्वाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
तमाम औराक़ शबनमिस्तान-ए-सहर की किरनों से जगमगाए
तुलूअ' होती है सुब्ह जैसे कली तमन्ना की मुस्कुराए
नुशूर वाहिदी
नज़्म
जल्वा-ए-हुस्न के इख़राज का आलम देखो
मेरी नज़रों में हैं रक़्साँ से शरर आज की रात