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नज़्म
जलाए... दीदा-ए-बे-ख़्वाब की हर राह दरवाज़े
की दर्ज़ों से निकालेगा... ख़ुदा की मेहरबानी इक
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
ज़ुल्म करते हैं सभी अब मेहरबानी की जगह
ज़िल्लतें मिलती हैं अक्सर क़द्रदानी की जगह
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
हमारे लिए जीत का शादियाना बजाया नहीं
किस लिए दफ़्तरों में हमारी ज़मीं पर गुल-ए-मेहरबानी
इरफ़ान शहूद
नज़्म
ये गिरजा है कि मुझ पर आसमाँ की मेहरबानी है
सलीबी-जंग में सारे सिपाही काम आए