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नज़्म
मैं कि मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त का पुराना मय-ख़्वार
महफ़िल-ए-हुस्न का इक मुतरिब-ए-शीरीं-गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कोई भाई से कहे ज़ख़्म-ए-जिगर भर दें मिरा
ख़ाना-ए-दिल को ज़ियारत से मुनव्वर कर दें
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
मैं ख़ुद हूँ आबला-पा कम-नसीब ख़ाक-बसर
है मेरी बज़्म फ़रोज़ाँ ब-फ़ैज़-ए-दाग़-ए-जिगर
बनो ताहिरा सईद
नज़्म
मय भी है साक़ी भी है फिर लुत्फ़-ए-मय-ख़ाना नहीं
मेरी बातों को समझ ले ऐसा दीवाना नहीं