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नज़्म
क्या बधिया भैंसा बैल शुतुर क्या गौनें पल्ला सर-भारा
क्या गेहूँ चाँवल मोठ मटर क्या आग धुआँ और अँगारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मोर-ए-बे-पर हाजते पेश-ए-सुलैमाने मबर
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा है मशरिक़ की नजात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नज़र आता है यूँ लगता है जैसे ये बला-ए-जाँ
मिरा हम-ज़ाद है हर गाम पर हर मोड़ पर जौलाँ