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नज़्म
मोर-ए-बे-पर हाजते पेश-ए-सुलैमाने मबर
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा है मशरिक़ की नजात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो सिल पर सुर्ख़ मिर्चें पीस कर सालन पकाती थीं
सहर से शाम तक मसरूफ़ लेकिन मुस्कुराती थीं
असना बद्र
नज़्म
किसे किस घाट उतरना है?
कहो उन से जो अगले मोर्चों से सुल्ह का पैग़ाम देते हैं
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
उँगली के छल्ले में राज कमल के गोरे पँख
हाए रे मोरी पीत निगोड़ी हाए रे मोरे पँख
इलियास बाबर आवान
नज़्म
''मोरचा मख़मल में देखा आदमी बादाम में''
''टूटी दरिया की कलाई ज़ुल्फ़ उलझी बाम में''