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नज़्म
इफ़्तेख़ार जालिब
नज़्म
सईद अहमद
नज़्म
हर इक सख़्त मौज़ू पर इस तरह बोलता था कि मुझ को
समुंदर समझते थे सब इल्म ओ फ़न का, हर इक मेरी ख़ातिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
फ़िराक़-ओ-हिज्र के मौसम हुए पारीना क़िस्से अब
ब-कसरत हैं मयस्सर अब तो माशूक़ान-ए-शीरीं-लब
फ़रहत परवीन
नज़्म
क़य्यूम नज़र
नज़्म
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
और आता भी नहीं मुझ को सुख़न-साज़ी का फ़न