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नज़्म
कि जिस के माथे की सुर्ख़ बिंदी मिरा नसीबा जगा रही थी
कि जिस की नज़रों से मैं ने यकसानियत की मय पी
दौर आफ़रीदी
नज़्म
यकसानियत के दश्त में खुलता है नुदरत का चमन
मायूस जज़्बों से इधर कुछ कर दिखाने की लगन
सलमान सरवत
नज़्म
सलमान बासित
नज़्म
मुझे यकसानियत से ख़ौफ़ आता है
ज़्यादा देर इक ही कैफ़ियत में ज़िंदा रहना कितना मुश्किल है
क़ासिम याक़ूब
नज़्म
जब उस ने गाँव को देखा बहुत यकसानियत पाई
कहा ये गाँव लगता है मिरे देहात का भाई