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नज़्म
चमन में नाज़ से अठखेलियाँ करती बहार आई
गुलों का पैरहन पहने वो जान-ए-इंतिज़ार आई
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
यौम-ए-आज़ादी ने यूँ छिड़का फ़ज़ाओं में गुलाल
गुल्सिताँ से भीनी भीनी ख़ुशबुएँ आने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
सुरूर बाराबंकवी
नज़्म
थे रक़म जिन में जिहाद-ओ-जंग-ए-आज़ादी के बाब
ताक़-ए-निस्याँ में उन्ही औराक़ को फेंका गया